*|| भगवद् गीता विचार ||* अन्तःकरण की प्रसन्नता होने पर इसके सम्पूर्ण दुःखों का अभाव हो जाता है और उस प्रसन्नचित्त वाले कर्मयोगी की बुद्धि शीघ्र ही सब ओर से हटकर एक परमात्मा में ही भलीभाँति स्थिर हो जाती है। *अध्याय- 2 श्लोक- 65* Download Bhagavad Gita App https://ift.tt/2TKTUch
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