*|| भगवद् गीता विचार ||* समबुद्धियुक्त पुरुष पुण्य और पाप दोनों को इसी लोक में त्याग देता है अर्थात उनसे मुक्त हो जाता है। इससे तू समत्व रूप योग में लग जा, यह समत्व रूप योग ही कर्मों में कुशलता है अर्थात कर्मबंध से छूटने का उपाय है। *अध्याय- 2 श्लोक- 50* Download Bhagavad Gita App https://ift.tt/2R7JbYz
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